Wednesday, January 28, 2009

पहली बार

आपके सामने पहली बार मुखातिब हो रहा हूँ । सच और ईमानदार, इन दोनों शब्दों पर बहस के लिए एक भीड़ है। इन सबके मजबूत दावों के बीच मैं अकेला हूं । न पूरी तरह सच्चा न पूरी तरह ईमानदार। बावजूद इसके बहस में शामिल हूं । ऐसा नहीं है कि कोई चोरी - डकैती की है या फिर रिश्वत- बैमानी से पैसा कमाया है। लेकिन बचपन में पापा कि जेब से पैसे चुराए हैं, मां से झूठ बोला, लिहाजा ईमानदार होने का कोई सबूत पेश नहीं कर सकता।

ब्लॉग का नाम मुद्दा इसलिए ही रखा है । सच के करीब होना भी बहुत बड़ी बात है। हम उनसे अच्छे हैं जो दूसरों को चोर बताने में जुटे हैं, ख़ुद कि ईमानदारी का डंका पीट रहे हैं, बावजूद यह जानते हुए कि ईमानदारी के झूठे दावे से बेमानी का सच कबूल करना ज्यादा अच्छा है। खैर बहस का ठेका हमारा नहीं है, जिन्हें करना है वे करें ।

उसकी सारी शख्सियत नखों और दांतो की वसीयत है वे वक्त के लिए वह एक शानदार छलांग है अंधेरी रातों का जागरण है नींद के खिलाफ नीली गुर्राहट , आसानी के लिए तुम उसे कुत्ता कह सकते हो उस लपलपाती हुई जीभ और हिलती हुई दुम के बहुत से लोग हमारे बीच हैं

उनका पालतूपन हरकत कर रहा तुम्हारी शराफत से इसका कोई वास्ता नहीं है उनकी
नज़र न कल पर थी, न आज पर है बहसों से अलग वह हड्डी के एक टुकड़े भर (सीझे हुए) अनाज पर उनकी निगाह है सिर्फ एक बार अपने खून में जहरमोहरातलाशती हुई मादा को बाहर निकालने के लिएवह तुम्हारी जंजीरों से शिकायत करता हैअन्यथा पूरा का पूरा वर्ष उसके लिए घास हैउसकी सही जगह तुम्हारे पैरों के पास हैमगर तुम्हारे जूतों में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं उनकी
नज़र जूते की बनावट नहीं देखतीऔर न उसका दाम देखती हैवहां, वह सिर्फ बित्ता भर मरा हुआ चाम देखती हैऔर तुम्हारे पैरों से बाहर आने तकउसका इंतज़ार करती है (पूरी आत्मीयता से)उसके दांतों और जीभ के बीच लालच की तमीज़ है जोतुम्हें जायकेदार हड्डी के टुकड़े की तरह प्यार करती हैऔर वहां, हद दर्जे की लचक है, लोच है, नर्मी हैमगर मत भूलो कि इन सबसे बड़ी चीज़ वह बेशर्मी हैजो अंत में तुम्हें भी उसी रास्ते पर लाती हैजहां भूख उस वहशी को पालतू बनाती है।।

यही सब है, जो sikhata है की aadmee banne से अच्छा है कुत्ता बन jao बहुत से कुत्ते mara matlab आदमी इन दिनों aiase ही najer आ rehe हैं

सच जो किसी को दिखता नहीं

शोहरत , नाम पर लगा गलतफहमियों का ढेर होता है जिसे भी यह मिली , बौरा सा गया , कोई कम तो कोई थोड़ा ज्यादा जिसे नहीं मिल पाई वो पूरे मनोयोग से जुटा है , उम्मीद पूरी होगी , उसे शायद यही मुगालता है अब पालने को कोई कुत्ता पलता है तो कोई मुगालता सब की अपनी - अपनी स्वतंत्रता की दुहाई है , सो सब पाल सकते हैं , कुत्ता भी और मुगालता भी



सो इन दिनों बहुत से लोग अपने- अपने मुगालते के साथ बाज़ार में हैं एक भीड़ सी है , जो लिखा सो छप गया है , इसलिए बड़े लेखक हो गये हैं लिटरेचर फेस्टिवल में जा कर आए हैं , इसलिए इनका लोहा तो मानना भी जरूरी है उनके पास बहुत से किस्से हैं , सुनाने को , बहुत से बड़े सेलिब्रिटी से वे मिल चुके हैं , इसलिए वे बता सकते हैं कि उनके बारे में ज्यादा तफसील से आप और हम अनपढ़ हैं , शायद इसलिए वे बता देते हैं किसी लेखक कि लिखी किताब के बारे में कि वह किताब कैसी रही , वे एक पाठक कि तरह नही बोलते , वे एक समीक्षक की तरह बताते हैं कि इतना बड़ा लेखक बेचारा कितनी गलती कर बैठा



ये सब हमारे इर्दगिर्द ही घूम रहे हैं , वे जो लिखते हैं , वो हमेशा अच्छा होता है इसके इसे ऐसे ऐसे भी ऐसे में जो कुछ लिखा जा रहा है वो घटिया है वो लिखते हैं इसलिए कि वो जो लिखते हैं छप जाता है , अच्छी बात हैं